नाबालिगों के बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को बरी करते हुए दिल्ली अदालत ने कहा कि बच्चों को उनके घरवालों ने बहुत कुछ सिखा रखा था। अदालत ने बरी किए गए व्यक्ति को एक लाख रुपये का मुआवजा देने का राज्य को निर्देश दिया और कहा कि इस बात के काफी सबूत हैं कि जाति संबंधी कारण ही उसे इस मामले में फंसाया गया है।
तीस हजारी कोर्ट के न्यायाधीश धर्मेश शर्मा की अदालत ने कहा कि इस मुकदमे से जुड़े हुए सबूत इशारा करते हैं कि आरोपी जोकि दलित समुदाय से है, प्रति बच्चों के अभिभावकों के प्रति पक्षपातपूर्ण है और उसे इस मामले में उसे फंसाया गया है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक न्याय प्रदाता प्रणाली का हमारा अनुभव है कि लोग अनेक कारणों से झूठे आरोप लगाते हैं, जिनमें से एक है जातिगत घृणा, जैसा कि इस मामले में सबूत को देखकर पता चल रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि एक बेकसूर व्यक्ति ने 6 साल तक झूठे बलात्कार जैसे गंभीर आरोपोंं का सामना किया। इसकी भरपाई के लिए यह व्यक्ति मुआवज़ा पाने का हकदार है, इसलिए उसे एक लाख रुपये दिए जाएं।
यह मामला 2015 में बच्चों का यौन अपराधों से पॉक्सो कानून के तहत दर्ज करवाया गया था। आरोप था कि व्यक्ति ने अपने पड़ोसी की नाबालिग बेटियों का बलात्कार किया है, आरोपी तभी से जेल में बंद था। जिला न्यायाधीश ने कहा कि हमारे समाज में अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष चलता रहता है और हम ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां पर समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। यहां कुछ भी संभव है। अदालत ने आरोपी को एक लाख रुपये की राशि दो महीने के अंदर देने का राज्य को निर्देश दिया है। अदालत ने पुलिस की जांच को भी गलत ठहराया है।
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