केरल में 24 वर्षीय स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता में ‘निपाह वायरस’ का मामला दर्ज किया गया है। जिससे स्वास्थ्य विभाग चौंकाना हो गया है। यह ‘निपाह वायरस’ का पाँचवा मामला है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज के जारी एक बयान के अनुसार, कोझिकोड के एक निजी अस्पताल में कार्यरत स्वास्थ्य कार्यकर्ता के नमूने सकारात्मक आने के बाद उसमें निपाह वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई है।
जिसके बाद राज्य सरकार ने भी उपलब्ध एकमात्र एंटी-वायरल उपचार का आदेश देकर घातक संक्रमण से पीड़ित को बचाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। सरकार ने बच्चे के इलाज के लिए आईसीएमआर से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी मंगवाई है। यह निपाह वायरस संक्रमण के लिए एकमात्र उपलब्ध एंटी-वायरल उपचार है, हालांकि यह अभी तक चिकित्सकीय रूप से सिद्ध नहीं हुआ है।
केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने भी कहा कि 9 साल का लड़का कोझिकोड के एक अस्पताल में वेंटिलेटर सपोर्ट पर है और उसकी हालत गंभीर बनी हुई है। इसके अलावा, घातक निपाह वायरस के प्रसार को रोकने के अपने प्रयासों में, केरल सरकार ने बुधवार को कोझिकोड और अन्य निषिद्ध क्षेत्रों में सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने का आदेश दिया।
केरल सरकार ने पहले कहा था कि राज्य में देखा गया वायरस का प्रकार बांग्लादेश वैरिएंट था, जो मानव से मानव में फैलता है और इसकी संक्रमण क्षमता कम लेकिन मृत्यु दर अधिक है।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि उच्च जोखिम वाले संपर्क श्रेणी में आने वाले सभी 76 लोगों की हालत स्थिर बनी हुई है। उन्होंने कहा कि हल्के लक्षण वाले 13 लोगों की अस्पताल में निगरानी की जा रही है।
निपाह वायरस: एक घातक वायरस
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, निपाह संक्रमण एक ज़ूनोटिक बीमारी है, जो जानवरों से लोगों में फैलती है, और दूषित भोजन के माध्यम से या सीधे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकती है। इसकी अवधि 4 से 14 दिन है।
निपाह वायरस से संक्रमण के लक्षण
-बुखार
-सिरदर्द
-माइलियागिया
-उल्टी करना
-गला खराब होना
-चक्कर आना
-उनींदापन
-बदली हुई चेतना
-न्यूरोलॉजिकल संकेत (तीव्र एन्सेफलाइटिस का संकेत)
इस वायरस से संक्रमित होने वाले पीड़ितों के बारे में डब्ल्यूएचओ का कहना है कि ज्यादातर लोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, हालांकि कुछ लोगों में तीव्र एन्सेफलाइटिस के बाद न्यूरोलॉजिकल स्थितियां बची रहती हैं। दोबारा बीमारी के कुछ मामले सामने आए हैं। इसमें मृत्यु दर 40-75% है। गंभीर मामलों में, लोगों को निमोनिया और गंभीर श्वसन समस्याओं का भी अनुभव होता है। और गंभीर मामलों में एन्सेफलाइटिस और दौरे पड़ते हैं, जिससे पीड़ित 24 से 48 घंटों के भीतर कोमा में भी जा सकते हैं।