
यूं तो दिल्ली देश की राजधानी है लेकिन वो एक राज्य भी है जहां विधानसभा भी है हर पांच साल में चुनाव भी होते है दिल्लीवासी अपनी पसंद की सरकार भी चुनते है.
लेकिन दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होने वाली किसी भी पार्टी की सरकार अपनी मर्ज़ी से कोई भी फैसला नही ले सकती उसे केंद्र सरकार के रहमो करम पर ही रहना पड़ता है.
इसका कारण यह कि जब 1993 में दिल्ली को एक राज्य का दर्जा मिला था तो दिल्ली से पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि का अधिकार छीनकर केंद्र ने खुद के पास ही रख लिया था.
यानि संविधान के हिसाब से देखा जाए तो दिल्ली की हालत आज भी सबसे अजीबोगरीब है. इसलिए क्योंकि ये एक राज्य होने के साथ केंद्र शासित प्रदेश भी है.
दिल्ली से जुड़ी राजनीति के ऐसे एक नए अध्याय की बुनियाद बुधवार को हमारी संसद ने रखी गई. जिसकी उम्मीद थी वही हुआ और लोकसभा में कल दिल्ली नगर निगम संशोधन बिल पारित हो गया. इस बिल के जरिए दिल्ली में मौजूद तीन नगर निगमों को मिलाकर एक कर दिया जाएगा.
संविधान के हिसाब से केंद्र सरकार को ऐसा विधेयक लाकर उसे संसद से पारित कराने का पूरा अधिकार है. पिछले 15 सालों से BJP ही दिल्ली MCD को संभाल रही है.
दिल्ली में MCD चुनाव की तारीखों के ऐलान होने के ऐन वक्त पर BJP ने ये दाव खेला है इसपर सियासत भी गर्मा गई है एक दूसरे पर आरोपों की बौछार का सिलसिला भी शुरू हो गया है.
बहरहाल, सवाल ये उठता है कि क्या तीनों निगमों को एक कर देने से दिल्लीवासियों को गंदगी, गढ्ढो से छुटकारा मिल जाएगा ? क्या ये फैसला दिल्ली से भ्रटाचार सफाया कर पाएगा?
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