Aaj ka Panchang 09 February: वृष राशि में बन रहा है ‘ग्रहण’ योग, ये है आज का नक्षत्र
Aaj ka Panchang 09 February: राहुकाल और शुभमुहूर्त के साथ जानें कैसे लगेगा कार्यस्थल पर मन और उन्नतिकारक कुंजियाँ

दिनांक – 09 फरवरी 2023
दिन – गुरुवार
विक्रम संवत् – 2079
शक संवत् – 1944
अयन – उत्तरायण
ऋतु – शिशिर
मास – फाल्गुन (गुजरात, महाराष्ट्र में माघ)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – चतुर्थी पूर्ण रात्रि तक (वॄद्धि तिथ)
नक्षत्र – उत्तराफाल्गुनी रात्रि 10:27 तक तत्पश्चात हस्त
योग – सुकर्मा शाम 04:46 तक तत्पश्चात धृति
राहु काल – दोपहर 02:19 से 03:43 तक
सूर्योदय – 07:16
सूर्यास्त – 06:32
चंद्रोदय – रात्रि 09:38
दिशा शूल – दक्षिण दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:34 से 06:25 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:28 से 01:19 तक
व्रत पर्व विवरण – संकष्ठ चतुर्थी
विशेष – चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
अपनी प्रकृति अनुसार करें आहार सेवन
मानवीय प्रकृति में जिस दोष की प्रधानता होती है उसके प्रकोपजन्य व्याधियाँ होने की सम्भावना अधिक होती है । इनसे रक्षा के लिए आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक कहते हैं :*
*विपरीत गुणस्तेषां स्वस्थवृत्तेर्विधिर्हितः ।
प्रकृति के विरुद्ध गुण का सेवन ही स्वास्थ्यवर्धक होता है । (च. सं., सूत्रस्थान ७.४१) इसलिए अपनी प्रकृति का निश्चय कर उसके अनुसार आहार-विहार का सेवन करना चाहिए ।
सभी आहार द्रव्यों का लाभ प्राप्त करने हेतु पदार्थ जिस दोष को बढ़ाता है उसके शमनकारी पदार्थों का युक्तिपूर्वक संयोग कर सेवन करना हितकर है । जैसे- पालक वायुवर्धक है तो उसके साथ में वायुशामक सोआ डाला जाता है, अदरक, लहसुन, काली मिर्च, हींग आदि द्रव्यों के उपयोग से दालों व सब्जियों के तथा तेल, घी, नमक के द्वारा जौ, मकई आदि अनाजों के वायुवर्धक गुण का शमन किया जाता है ।
आहार द्वारा वायु को संतुलित कैसे रखें ?
प्रकुपित वायु बल, वर्ण और आयु का नाश कर देती है । मन में अस्थिरता, दीनता, भय, शोक उत्पन्न करती है।
अकेले वात के प्रकोप से ८० प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं । प्रकुपित वायु का पित्त व कफ के साथ संयोग होने से उत्पन्न होनेवाले रोग असंख्य हैं । वायु अतिशय बलवान व आशुकारी (शीघ्र काम करनेवाली) होने से उससे उत्पन्न होनेवाले रोग भी बलवान व शीघ्र घात करनेवाले होते हैं । अतः वायु को नियंत्रण में रखने के लिए आहार में वायुवर्धक व वायुशामक पदार्थों का युक्तियुक्त उपयोग करना चाहिए ।
वायुशामक पदार्थ
अनाजों में : साठी के चावल, गेहूँ, बाजरा, तिल
दालों में : कुलथी, उड़द
सब्जियों में : बथुआ, पुनर्नवा (साटोडी), परवल, कोमल मूली, कोमल (बिना बीज के) बैंगन, पका पेठा, सहजन की फली, भिंडी, सूरन, गाजर, शलगम, पुदीना, हरा धनिया, प्याज, लहसुन, अदरक
फलों में : सूखे मेवे, अनार, आँवला, बेल, आम, नारंगी, बेर, अमरूद, केला, अंगूर, मोसम्बी, नारियल, सीताफल, पपीता, शहतूत, लीची, कटहल (पका), फालसा, खरबूजा, तरबूज
मसालों में : सोंठ, अजवायन, सौंफ, हींग, काली मिर्च, पीपरामूल, जीरा, मेथीदाना, दालचीनी, जायफल, लौंग, छोटी इलायची ।
अन्य वायुशामक पदार्थ
केसर, सेंधा नमक, काला नमक, देशी गाय का दूध एवं घी, सभी प्रकार के तेल [बरें (कुसुम्भ, कुसुम) का तेल छोड़कर ]
वायुवर्धक पदार्थ
अनाजों में : जौ, ज्वार, मकई
दालों में : सेम, मटर, राजमा, चना, तुअर, मूँग (अल्प वायुकारक), मोठ, मसूर ।
सब्जियों में : अरवी, ग्वारफली, सरसों, चौलाई, पालक, पकी मूली, पत्तागोभी, लौकी, ककड़ी, टिंडा
फलों में : नाशपाती, जामुन, सिंघाड़ा, कच्चा आम, मूँगफली ।
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