दिनांक – 24 मई 2023
दिन – बुधवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – उत्तरायण
ऋतु – ग्रीष्म
मास – ज्येष्ठ
पक्ष – शुक्ल
तिथि – पंचमी 25 मई प्रातः 03:00 तक तत्पश्चात षष्ठी
नक्षत्र – पुनर्वसु दोपहर 03:06 तक तत्पश्चात पुष्य
योग – गण्ड शाम 05:20 तक तत्पश्चात वॄद्धि
सूर्योदय – 05:56
सूर्यास्त – 07:18
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:30 से 05:13 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:15 से 12:58 तक
व्रत पर्व विवरण – महादेव विवाह (ओडिशा)
विशेष – पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
विद्यालाभ व अद्भुत विद्वत्ता की प्राप्ति हेतु
विद्यालाभ के लिए मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि सरस्वति मम जिह्वाग्रे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा ।’
विधि : जिन राज्यों में पूर्णिमा को माह का अंत माना जाता है वहाँ यह मंत्र ६ जून को रात्रि ११:१३ से रात्रि ११:४५ तक १०८ बार जप लें और फिर मंत्रजप के बाद रात्रि ११-३० से १२ बजे के बीच जीभ पर लाल चंदन से ‘ह्रीं’ मंत्र लिख दें । अथवा ७ जून को प्रातः ३ से रात्रि ९:०२ बजे तक १०८ बार मंत्र जप लें और रात्रि ११ से १२ बजे के बीच जीभ पर लाल चंदन से ‘ह्रीं’ मंत्र लिख दें ।
महाराष्ट्र, गुजरात आदि जहाँ अमावस्या को माह का अंत माना जाता है वहाँ ४ जुलाई को सुबह ८:२५ से रात्रि ११:४५ बजे तक १०८ बार मंत्र जप लें और रात्रि ११ से १२ बजे के बीच जीभ पर लाल चंदन ‘ह्रीं’ मंत्र लिख दें ।
जिसकी जीभ पर यह मंत्र इस विधि से लिखा जायेगा उसे विद्यालाभ व अद्भुत विद्वत्ता की प्राप्ति होगी ।*
रिटायर लाइफ में सुखी रहने के लिए मुख्य बिन्दु*
१. बिना मांगे सलाह न दें ।
२. कम बोलें, मौन रहें ।
3. सहनशीलता बढ़ाएं ।
४. निक्कमे न रहें, कुछ न कुछ काम में व्यस्त रहें ।
पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
आभूषणों का शरीर के अंगों पर प्रभाव
पायल : (१) पैर में पहना हुआ शुद्ध चाँदी का कड़ा अथवा मोटी पायल पैर के तलवों में होनेवाली जलन को रोकती है ।
(२) एड़ी की सूजन से रक्षा करती है ।
(३) रक्त के परिसंचरण को व्यवस्थित रखती है ।
(४) सायटिका के रोग में लाभदायी है ।
५) लिम्फ ग्रंथियों को करके रोग- प्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है ।
(६) अनेक प्रकार के स्त्री रोगों जैसे, मासिक धर्मसम्बन्धी, प्रसूतिसम्बन्धी, वंध्यत्व, हारमोन्स के असंतुलन आदि में लाभदायक है ।
७) स्वास्थ्य और सुन्दरता के लिए शरीर की चेतना के प्रवाह को व्यवस्थित करके तंदुरुस्ती की रक्षा करती है ।
(८) कामवासना पर नियंत्रण रखने में सहायक होती है । कमर से नीचे के भागों में चाँदी के आभूषण पहनने से महिलाओं को लाभ होता है ।
आयुर्वेद के अनुसार कमर से नीचे के भागों पर सोने के धारण करना वर्जित है ।
कर्ण-कुंडल : भारतीय संस्कृति कर्ण-छेदन का भी एक विशेष महत्त्व है । चिकित्सकों और भारतीय दर्शनशास्त्रियों का मानना है कि कर्णछेदन से बुद्धिशक्ति, विचारशक्ति और निर्णयशक्ति का विकास होता है । वाणी के व्यय से जीवनशक्ति का ह्रास होता है । कर्णछेदन से वाणी के संयम में सहायता मिलती है । इससे उच्छृंखलता नियंत्रित होती है और कर्णनलिका दोषरहित बनती है । यह विचार पाश्चात्य जगत के लोगों को भी जँचा और वहाँ आज फैशन के रूप में कर्णछेदन कराकर कुंडल पहने जाते हैं ।
कंगन : कंगन से जननेन्द्रिय पर नियंत्रण रहता है और कामवासना संतुलित रहती है तथा यह हृदय पुष्ट करता है । रक्त के दबाव को नियंत्रित करता है ।
बाजूबंद : इससे वीरता के गुण विकसित होते हैं और शरीर सुडौल रहता है । यह पाचनतंत्र को व्यवस्थित रखता है और एलर्जी से रक्षा करता है ।
हार : विभिन्न रत्नों और धातुओं से बने हार अनेक रोगों को नियंत्रित करने में लाभदायी हैं ।
*थायराइड ग्रंथि और श्वसनतंत्र पर इनका अच्छा असर पड़ता है ।
करधनी : यह मूलाधार केन्द्र को जागृत करके किडनी और मूत्राशय की कार्यक्षमता को बढ़ाती है तथा कमर आदि के दर्दों में राहत देती है ।
अँगूठी : ऊर्जा के विकास, मानसिक तनाव दूर करने, जननेन्द्रिय पर नियंत्रण पाने, कामवासना पर नियंत्रण रखने और पाचनतंत्र को मजबूत बनाने हेतु मिलावटरहित सोने की अँगूठी पहनी जाती है । विभिन्न धातुओं की अँगूठी का शरीर पर अलग- अलग प्रभाव पड़ता है, ऐसे ही अलग-अलग रत्नों (नगों) का भी अपना अलग-अलग प्रभाव होता है ।
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