जानें क्या है श्राद्ध के 15 दिनों के पीछे की अद्भुत कहानी

हिन्दू धर्म के अनुसार श्राद्ध के 15 दिनों में रोज़ाना लोग अपने पितृपक्षों को पानी देते हैं। साथ ही ब्राह्मणों को खाना खिलाकर उन्हें अपने पितरो से सम्बंधित दान देना भी ज़रूरी होता हैं।

हिन्दू धर्म के अनुसार श्राद्ध के 15 दिनों में रोज़ाना लोग अपने पितृपक्षों को पानी देते हैं। साथ ही ब्राह्मणों को खाना खिलाकर उन्हें अपने पितरो से सम्बंधित दान देना भी ज़रूरी होता हैं।

15 दिनों के क्यों होते है श्राद्ध?

दरअसल, पितृपक्षों के इन दिनों में जो भी पानी या दान हम पूर्वजों को देते हैं वह श्राद्ध कह लाता है। शास्त्रों के मुताबिक़ जो लोग अब इस दुनिया में नहीं रहे वह सूक्षम रूप से धरती पर आते हैं। साथ ही अपने परिजनों का पानी स्वीकार करते हैं। इस दौरान ब्राह्मणों के माध्यम से उन्हें भोजन भी खिलाते हैं।

क्या है श्राद्ध की अद्भुत कहानी?

शास्त्रों में बताई गयी कहानी के मुताबिक जब महाभारत के युद्ध के बीच कर्ण का निधन हो गया था। तब उनकी आत्मा सीधा स्वर्ग लोक पहुंची थी। उस समय उन्हें रोज़ाना खाने के बजाए सोना और आभूषण खाने मिलते थे।

एक दिन उन्होंने जब इस बात को लेकर सवाल किया तो देवराज इंद्र ने उन्हें यह उतर दिया की धरती पर रहकर उन्होंने हमेशा लोगों को आभूषण बांटे हैं और अपने पूर्वजों के प्रति कुछ काम नहीं किया।

इस बात पर कर्ण ने यह उत्तर दिया की वह अपने पूर्वजों को जानते ही नहीं है। इस पर भगवान इंद्र ने उन्हें 15 दिनों के लिए धरती पर जाने के लिए बोला और कहा कि अपने पूर्वजों को दे। इस अद्भुत कहानी के बाद से ही 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है।

पितरों को पानी देने से होता हैं ये फायदा


शास्त्रों के अनुसार हरवंश पुराण में बताया गया है कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा था कि श्राद्ध करने वाला व्यक्ति दोनों लोकों में सुख प्राप्त करता है। ऐसा सब करने से हमारे पितृ हमे अच्छे आशीर्वाद देते है और हमारी मनोकामना भी पूर्ण होती हैं।

 

 

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