जानें कब से शुरू होंगे श्राद्ध, रखे इन ख़ास बातों का ध्यान
पितृपक्ष हिन्दू धर्म के बहुत ही पाख दिन मानें जाते हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार श्राद्ध के दिनों में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा व दान किया जाता है।

पितृपक्ष हिन्दू धर्म के बहुत ही पाख दिन मानें जाते हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार श्राद्ध के दिनों में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा व दान किया जाता है। इन 15 दिनों में हिन्दू धर्म में अपने पूर्वजों को याद करते हुए पूजा व श्राद्ध किया जाता है।
पितृपक्ष के दिनों की ख़ास बात ये है कि इनको करने का सबसे बड़ा मकसद होता है अपने पूर्वजों से किसी भी तरह जुड़े रहना और उन्हें याद करना। शास्त्रों के द्वारा निर्धारित पितृपक्ष में पिंडदान करते हैं।
इस वर्ष कबसे है श्राद्ध?
इस साल पितृपक्ष 20 सितंबर से है और अंतिम श्राद्ध की तिथि 6 अक्टूबर हैं।
श्राद्ध के दिनों में इन बातों का रखें ख़ास ध्यान
ब्राह्मण भोज और पूजा का समय दोपहर का रखें
हिंदू शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण भोज का समय दोपहर में हो तो अच्छा रहता है। इसी के साथ उन दिनों अगर पितरों के लिए दान किए जाने वाला भोजन गाय कुत्ते और कौए को भी खिलाना चाहिए।
बर्तनों का उपयोग सावधानी से करें
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोजन के वक्त लोहे के बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए। शास्त्रों की मानें तो लोहे के बर्तन उपयोग करने से परिवार पर बुरा असर पड़ता है। धन की कमी के साथ लोगों में टकराव बढ़ जाता है।
तेल से दूर रहना ठीक है
पितृपक्ष के दौरान अगर आप किसी को भोजन खिला रहे हैं या किसी के घर जाकर पितृ पक्ष का भोजन खा रहे हैं। दोनों ही परिस्थिति में शरीर के किसी भी अंग में तेल न लगाएं। अगर संभव हो सके तो तेल नहीं लगाने के अलावा बाल और दाढ़ी भी नहीं कटवाए।
किसी भी शुभकार्य या ख़रीदारी से बचे
यूं तो शुभ कार्य होना शुभ ही होता है लेकिन पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को याद करते वक्त कोई भी ऐसा कार्य न करें जो आपके ध्यान को भटकाए। इसलिए शुभ कार्य और खरीदारी से पितृपक्ष के दौरान दूर रहने को कहा जाता है।
किसी का अपमान या निरादर ना करें
शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष के दौरान किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करें। आपके दरवाजे पर आया भिक्षु हो या जानवर उन्हें खाली हाथ नहीं जाने दें। ऐसी मान्यताएं हैं कि पूर्वज किसी भी रुप में आपके घर आ सकते हैं।
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