आज का हिन्दू पंचांग 26 नवम्बर: जानिए शनिवार का पंचांग, राहुकाल और शुभ मुहूर्त
आज का हिन्दू पंचांग 26 नवम्बर: राहुकाल और शुभमुहूर्त के साथ जानें कैसे लगेगा कार्यस्थल पर मन और उन्नतिकारक कुंजियाँ

दिनांक – 26 नवम्बर 2022
दिन – शनिवार
विक्रम संवत् – 2079
शक संवत् – 1944
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – मार्गशीर्ष
पक्ष – शुक्ल
तिथि – तृतीया शाम 07:28 तक तत्पश्चात चतुर्थी
नक्षत्र – मूल दोपहर 02:58 तक तत्पश्चात पूर्वाषाढ़ा
योग – शूल रात्रि 01:14 तक तत्पश्चात गण्ड
राहु काल – सुबह 09:44 से 11:05 तक
सूर्योदय – 07:00
सूर्यास्त – 05:53
दिशा शूल – पूर्व दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:15 से 06:08 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:01 से 12:53 तक
व्रत पर्व विवरण –
विशेष – तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
शनिवार के दिन विशेष प्रयोग
शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है । (ब्रह्म पुराण)
हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । (पद्म पुराण)*
आर्थिक कष्ट निवारण हेतु
एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है ।*
विघ्न-बाधाओं व पाप-ताप से रक्षा हेतु
पीपल का दर्शन, पूजन व स्पर्श बड़ा हितकारी है । व्यक्ति, कितना भी मुसीबतों और पापों से घिरा हुआ हो, ३ पीपल के पौधे या कलमें ले और ‘ॐ अश्वत्थ वृक्षराजाय नम: ।’ ऐसा १०८ बार जप करे एवं यह भावना करे कि ‘हे पीपल देवता ! वृक्षों में राजा ! मैं आपको नमन करता हूँ ।’ फिर हाथ से वे पौधे या कलमे ठीक जगह पर लगा दे ।*
इससे उसके पाप-ताप कटेंगे, वह विघ्न-बाधाओं से बाहर आ जायेगा । यह तुम लोग कर सकते हो और दूसरों को भी प्रेरित कर सकते हो
सर्दियों में गोमूत्र-सेवन
शरीर की पुष्टि के साथ शुद्धि भी आवश्यक है । गोमूत्र शरीर के सूक्ष्म-अतिसूक्ष्म स्रोतों में स्थित विकृत दोष व मल को मल-मूत्रादि के द्वारा बाहर निकाल देता है । इसमें स्थित कार्बोलिक एसिड कीटाणुओं व हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है । इससे रोगों का समूल उच्चाटन करने में सहायता मिलती है । गोमूत्र में निहित स्वर्णक्षार रसायन का कार्य करते हैं । अतः गोमूत्र के द्वारा शरीर की शुद्धि व पुष्टि दोनों कार्य पूर्ण होते हैं ।*
कफ के रोग (जैसे सर्दी खांसी आदि) वायु के रोग, पेट के रोग, गैस, अग्निमान्ध, गठिया, घुटने का दर्द, पीलिया लीवर के रोग, प्लीहा के रोग, बहुमूत्रता, शोथ, जोड़ों का दर्द, बच्चों के रोग, कान के रोग, सर में रुसी, सिरदर्द आदि में उपयोगी ।*
सेवन विधिः
प्रातः 25 से 40 मि.ली. (बच्चों को 10-15 मि.ली.) गोमूत्र कपड़े से सात बार छानकर पियें । इसके बाद 2-3 घंटे तक कुछ न लें । ताम्रवर्णी गाय अथवा बछड़ी के मूत्र सर्वोत्तम माना गया है ।*
विशेष : सुबह गोमूत्र में 10-15 मि.ली. गिलोय का रस (अथवा 2-3 ग्राम चूर्ण) मिलाकर पीना उत्कृष्ट रसायन है ।*
ताजा गोमूत्र न मिलने पर गोझरण अर्क का प्रयोग करें । 10-20 मि.ली. (बच्चों को 5-10 मि.ली.) गोझरण अर्क पानी में मिलाकर लें ।
*(गोझरण अर्क सभी संत श्री आशारामजी बापू आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है ।)
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