आज का हिन्दू पंचांग 22 जुलाई: इस नक्षत्र में पड़ रहा है श्रावण माह का दूसरा शुक्रवार
आज का हिन्दू पंचांग 22 जुलाई: राहुकाल और शुभमुहूर्त के साथ जानें कैसे लगेगा कार्यस्थल पर मन और उन्नतिकारक कुंजियाँ

दिनांक – 22 जुलाई 2022
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत – 2079
शक संवत – 1944
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – श्रावण (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार आषाढ़)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – नवमी सुबह 09:32 तक तत्पश्चात दशमी
नक्षत्र – भरणी अपरान्ह 04:25 तक तत्पश्चात कृतिका
योग – शूल दोपहर 12:31 तक तत्पश्चात गण्ड
राहु काल – सुबह 11:06 से 12:46 तक
सूर्योदय – 06:06
सूर्यास्त – 07:26
दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
ब्रह्म मुहूर्त – प्रातः 04:41 से 05:23 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:25 से 01:08 तक
व्रत पर्व विवरण –
विशेष – नवमी को लौकी खाना त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34) , दशमी को कलंबी शाक त्याज्य है ।
आरती क्यों करते हैं ?
हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों में संध्योपासना तथा किसी भी मांगलिक पूजन में आरती का एक विशेष स्थान है । शास्त्रों में आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘नीराजन’ भी कहा गया है ।
पूज्य बापूजी वर्षों से न केवल आरती की महिमा, विधि, उसके वैज्ञानिक महत्त्व आदि के बारे में बताते रहे हैं बल्कि अपने सत्संग – समारोहों में सामूहिक आरती द्वारा उसके लाभों का प्रत्यक्ष अनुभव भी करवाते रहे हैं ।
पूज्य बापूजी के सत्संग – अमृत में आता है : “आरती एक प्रकार से वातावरण में शुद्धिकरण करने तथा अपने और दूसरे के आभामंडलों में सामंजस्य लाने की एक व्यवस्था है । हम आरती करते हैं तो उससे आभा, ऊर्जा मिलती है । हिन्दू धर्म के ऋषियों ने शुभ प्रसंगों पर एवं भगवान की, संतो की आरती करने की जो खोज की है । वह हानिकारक जीवाणुओं को दूर रखती है, एक-दूसरे के मनोभावों का समन्वय करती है और आध्यात्मिक उन्नति में बड़ा योगदान देती है ।
शुभ कर्म करने के पहले आरती होती है तो शुभ कर्म शीघ्रता से फल देता है । शुभ कर्म करने के बाद अगर आरती करते हैं तो शुभ कर्म में कोई कमी रह गयी हो तो वह पूर्ण हो जाती है । स्कन्द पुराण में आरती की महिमा का वर्णन है । भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :
मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत्कृतं पूजनं मम ।
सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने सुत ।।
‘जो मन्त्रहीन एवं क्रियाहीन (आवश्यक विधि-विधानरहित) मेरा पूजन किया गया है, वह मेरी आरती कर देने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है ।’ (स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड, मार्गशीर्ष माहात्म्य : ९:३७)
ज्योत की संख्या का रहस्य
सामान्यत: ५ ज्योतवाले दीपक से आरती की जाती है, जिसे ‘पंचदीप’ कहा जाता है । आरती में या तो एक ज्योत हो या तो तीन हों या तो पाँच हों । ज्योत विषम संख्या (१,३,५,….) में जलाने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है । यदि ज्योत की संख्या सम (२,४,६,…) हो तो ऊर्जा – संवहन की क्रिया निष्क्रिय हो जाती है ।
अतिथि की आरती क्यों ?
हर व्यक्ति के शरीर से ऊर्जा, आभा निकलती रहती है । कोई अतिथि आता है तो हम उसकी आरती करते हैं क्योंकि सनातन संस्कृति में अतिथि को देवता माना गया है । हर मनुष्य की अपनी आभा है तो घर में रहनेवालों की आभा को उस अतिथि की नयी आभा विक्षिप्त न करे और वह अपने को पराया न पाये इसलिए आरती की जाती है । इससे उसको स्नेह-का-स्नेह मिल गया और घर की आभा में घुल-मिल गये । कैसी सुंदर व्यवस्था है सनातन धर्म की !”
गोमूत्र का करें सेवन
वर्षा ऋतुजन्य व्याधियों से रक्षा व रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने हेतु गोमूत्र सर्वोपरि है । सूर्योदय से पूर्व १५ से २० मि.ली. ताजा गोमूत्र कपड़े से छानकर पीने से अथवा १० से १५ मि.ली. गोमूत्र अर्क पानी में मिला के पीने से शरीर के सभी अंगों की शुद्धि होकर ताजगी, स्फूर्ति व कार्यक्षमता में वृद्धि होती है ।
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