दिनांक – 20 सितम्बर 2023*
दिन – बुधवार*
विक्रम संवत् – 2080*
शक संवत् – 1945*
अयन – दक्षिणायन*
ऋतु – शरद*
मास – भाद्रपद*
पक्ष – शुक्ल*
तिथि – पंचमी दोपहर 02:16 तक तत्पश्चात षष्ठी*
नक्षत्र – विशाखा दोपहर 02:59 तक तत्पश्चात अनुराधा*
योग – विष्कम्भ 21 सितम्बर प्रातः 03:06 तक तत्पश्चात प्रीति*
राहु काल – दोपहर 12:33 से 02:02 तक*
सूर्योदय – 06:28*
सूर्यास्त – 06:39*
दिशा शूल – उत्तर दिशा में*
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:53 से 05:40 तक*
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:10 से 12:57 तक
व्रत पर्व विवरण – ऋषि पंचमी, गुरु पंचमी (ओड़िशा), रक्षा पंचमी (बंगाल)
विशेष – पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
ऋषि पंचमी : 20 सितम्बर 2023
वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह बात सिद्ध हो चुकी है कि मासिक धर्म के दिनों में स्त्री के शरीर से अशुद्ध परमाणु निकलते हैं, उसके मन-प्राण विशेषकर नीचे के केन्द्रों में होते हैं । इसलिए उन दिनों के लिए शास्त्रों में जो व्यवहार्य नियम बताये गये हैं, उनका पालन करने से हमारी उन्नति होती है ।
इस व्रत की कथा के अनुसार जिस किसी महिला ने मासिक धर्म के दिनों में शास्त्र-नियमों का पालन नहीं किया हो या अनजाने में ऋषि के दर्शन कर लिये हों या इन दिनों में उनके आगे चली गयी हो तो उस गलती के कारण जो दोष लगता है, उस दोष के निवारण हेतु, इस अपराध के लिए क्षमा माँगने हेतु यह व्रत रखा जाता है ।
ऋषि-मुनियों को आर्षद्रष्टा कहते हैं । उन्होंने कितना अध्ययन करने के बाद सब रहस्य बताये हैं ! ऐसे ही नहीं कह दिया है । अभी भी आप अनुभव कर सकते हैं कि जिन दिनों घर की महिलाएँ मासिक धर्म में होती हैं, उन दिनों में प्रायः आपका मन उतना प्रसन्न और उन्नत नहीं रहता जितना और दिनों में रहता है ।
जिन घरों में शास्त्रोक्त नियमों का पालन होता है, लोग कुछ संयम से जीते हैं, उन घरों में तेजस्वी संतानें पैदा होती हैं ।
व्रत-विधि
ऋषि पंचमी का दिन त्यौहार का दिन नहीं है, व्रत का दिन है । आज के दिन हो सके तो अधेड़ा का दातुन करना चाहिए । दाँतों में छिपे हुए कीटाणु आदि निकल जायें और पायरिया जैसी बीमारियाँ नहीं हों तथा दाँत मजबूत हों – इस तरह दाँतों की तंदुरुस्ती का ख्याल रखते हुए यह बात बतायी गयी हो, ऐसा हो सकता है ।
इस दिन शरीर पर गाय के गोबर का लेप करके नदी में 108 बार गोते मारने होते हैं । गोबर के लेप से शरीर का मर्दन करते हुए स्नान करने के पीछे रोमकूप खुल जायें, चमड़ी पर से कीटाणु आदि का नाश हो जाय और साथ में एक्युप्रेशर व मसाज भी हो जाय – ऐसा उद्देश्य हो सकता है । 108 बार गोते मारने के पीछे ठंडी, गर्मी या वातावरण की प्रतिकूलता झेलने की जो रोगप्रतिकारक शक्ति शरीर में है, उसे जागृत करने का हेतु भी हो सकता है ।
अब आज के जमाने में नदी में जाकर 108 बार गोते मारना सबके लिए तो संभव नहीं है, इसलिए ऐसा आग्रह भी मैं नहीं रखता हूँ, लेकिन स्नान करो तब 108 बार हरिनाम लेकर अपने दिल को तो हरिरस से जरूर नहलाओ ।
स्नान के बाद सात कलश स्थापित करके सप्त ऋषियों का आवाहन करते हैं । उन ऋषियों की पत्नियों का स्मरण करके, उनका आवाहन, अर्चन-पूजन करते हैं । जो ब्राह्मण हो, ब्रह्मचिंतन करता हो, उसे सात केले घी-शक्कर मिलाकर देने चाहिए – ऐसा विधान है । अगर कुछ भी देने की शक्ति नहीं है और न दे सकें तो कोई बात नहीं, पर दुबारा ऐसा अपराध नहीं करेंगे यह दृढ़ निश्चय करना चाहिए ।
ऋषि पंचमी के दिन बहनें मिर्च, मसाला, घी, तेल, गुड़, शक्कर, दूध नहीं लेतीं । उस दिन लाल वस्त्र का दान करने का विधान है ।
आज के दिन सप्तर्षियों को प्रणाम करके प्रार्थना करें कि ‘हमसे कायिक, वाचिक एवं मानसिक जो भी भूलें हो गयी हों, उन्हें क्षमा करना । आज के बाद हमारा जीवन ईश्वर के मार्ग पर शीघ्रता से आगे बढ़े, ऐसी कृपा करना ।’
ऋषि पंचमी का यह व्रत हमें ऋषिऋण से मुक्त होने के अवसर की याद दिलाता है । लौकिक दृष्टि से तो यह अपराध के लिए क्षमा माँगने का और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है, पर सूक्ष्म दृष्टि से अपने जीवन को ब्रह्मपरायण बनाने का संदेश देता है । ऋषियों की तरह हमारा जीवन भी संयमी, तेजस्वी, दिव्य, ब्रह्मप्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करनेवाला हो – ऐसी मंगल कामना करते हुए ऋषियों और ऋषिपत्नियों को मन-ही-मन आदरपूर्वक प्रणाम करते हैं ।*
*(लोक कल्याण सेतु : अगस्त 2003)*