Aaj Ka Panchang 25 September: आज एकादशी तिथि, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और योग

Aaj ka Panchang 25 September: राहुकाल और शुभमुहूर्त के साथ जानें कैसे लगेगा कार्यस्थल पर मन और उन्नतिकारक कुंजियाँ

दिनांक – 25 सितम्बर 2023

दिन – सोमवार*

विक्रम संवत् – 2080*

शक संवत् – 1945*

अयन – दक्षिणायन*

ऋतु – शरद*

मास – भाद्रपद*

पक्ष – शुक्ल*

तिथि – दशमी सुबह 07:55 तक तत्पश्चात एकादशी (क्षय तिथि)*

नक्षत्र – उत्तराषाढ़ा सुबह 11:55 तक तत्पश्चात श्रवण*

योग – अतिगण्ड दोपहर 03:23 तक तत्पश्चात सुकर्मा*

राहु काल – सुबह 08:00 से 09:30 तक*

सूर्योदय – 06:29*

सूर्यास्त – 06:34*

दिशा शूल – पूर्व दिशा में*

ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:54 से 05:41 तक*

निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:08 से 12:55 तक*

व्रत पर्व विवरण – पद्मा-परिवर्तिनी एकादशी (स्मार्त)*

विशेष – एकादशी को शिम्बी (सेम) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

पद्मा-परिवर्तिनी एकादशी

एकादशी 25 सितम्बर सुबह 07:55 से 26 सितम्बर प्रातः 05:00 तक ।
व्रत उपवास 26 सितम्बर 2023 मंगलवार को रखा जायेगा ।
25 एवं 26 सितम्बर दो दिन चावल खाना और खिलाना निषेध है ।

एकादशी व्रत के लाभ

एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है ।*

जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।*

जो पुण्य गौ-दान, सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।*

एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं । इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।*

 धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है ।*

कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।*

परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है । पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ । भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है । एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है ।*

संध्या के समय वर्जित कार्य

संध्या के समय निषिद्ध कर्मों से सावधान करते हुए पूज्य बापूजी कहते हैं :-*

संध्या के समय व्यवहार में चंचल नहीं होना चाहिए ।*
भोजन आदि खानपान नहीं करना चाहिए ।*
*संध्या के समय बड़े निर्णय नहीं लेने चाहिए ।*
*पठन-पाठन, शयन नहीं करना चाहिए ।*
खराब स्थानों में घूमना नहीं चाहिए ।*
संध्या के समय स्नान न करें ।*
संध्या के समय स्त्री का सहवास न करें ।*

संध्याकाल अथवा प्रदोषकाल (सूर्यास्त का समय) में भोजन से शरीर में व्याधियाँ उत्पन्न होता है ।*
श्मशान आदि खराब स्थानों में घूमने से भय उत्पन्न होता है ।*
दिन में एवं संध्या के समय शयन आयु को क्षीण करता है ।*
पठन- पाठन करने से वैदिक ज्ञान और आयु का नाश होता है ।*
संध्या के समय स्त्री-सहवास करने से आसुरी, कुसंस्कारी अथवा विकलांग संतान उत्पन्न होती है । यदि संतान नहीं हुई तो दम्पती को कोई खतरनाक बीमारी हो जाती है, जिससे वे बेचारे उम्रभर रोते रहते हैं ।”*Accherishtey

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