
आज दो जून है और सोशल मीडिया में ट्रेंड हो रहे इस ‘दो जून की रोटी’ पर भरपूर ज्ञान परोसा जा रहा है और बहुत से लोग तो इस पर मीमस बनाते हुए पूछ रहे है जैसे की – आपने 2 जून की रोटी खाई क्या? तो कोई ‘दो जून की रोटी नसीबवालों को मिलती है’ और ‘दो जून की रोटी बहुत मुश्किल से मिलती है’ जैसा कैप्शन लिखकर सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे है।
अगर आप भी इस दुविधा में है की ये सब क्या चल रहा है तो हम आपको बताते है पूरा सच दरअसल, 2 जून की रोटी एक पुरानी भारतीय कहावत से उठाया गया है और इसका मतलब यही है की आपको अगर हर समय 2 टाइम यानी दोपहर का भोजन (Lunch) और Dinner मिल जाता है तो आप खुशनसीब है।
ऐसे में ये सब अवधी भाषा में बोला जाता था की जून का मतलब वक्त अर्थात समय से होता है और इसलिए हमारे घर के बड़े-बूढ़े हों या पूर्वज इस कहावत का इस्तेमाल पहले से ही दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर करते थे और तभी इस कहावत के जरिए वो अपने बच्चों को थोड़े में ही संतुष्ट रहने की सीख और ज्ञान देते थे। साथ ही उनका ये भी मानना था कि अगर आप मेहनत करके गरीबी में कम से कम दोनों टाइम का खाना भी कहते है तो वही सम्मान से जीने के लिए काफी होता है।
ऐसे समझिये ‘दो जून की रोटी का मतलब’
देखा जाये तो गरीबी और भूख एक दूसरे के पूरक हैं और भूख लगेगी तो रोटी तो कहानी जरूरी होगी और रोटी कमाना आसान किसी के लिए भी नहीं है क्योकि रोटी बड़ी मेहनत से कमाई जाती है और इसलिए ‘दो जून की रोटी’ की चिंता और चर्चा कभी खत्म नहीं होती। ऐसे में देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा तब दिया था और तब से (इंदिरा गांधी) से लेकर आज के समय नरेंद्र मोदी तक 52 साल हो गए है और कुल 12 प्रधानमंत्री बदल गए, लेकिन देश का गरीब मानो सियासी मोहरा बनकर रह गया है।
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